Sunday, 24 July 2016

श्रावण मास का महत्व

सनातन धर्म में बारह मासों का वर्णन किया गया है, 1. चैत्र, 2. वैशाख , 3. ज्येष्ठ, 4. आषाढ़, 5. श्रावण, 6. भाद्रपद, 7. आश्विन, 8. कार्तिक, 9. मार्गशीर्ष, 10. पौष, 11. माघ और 12. फाल्गुन !

मासों की गणना भी बड़ी वैज्ञानिक स्तर पर आधारित है !

जिस मास में पूर्णिमा चित्रा नक्षत्र में होती है वह चैत्र मास कहलाता है, विशाखा नक्षत्र में वैशाख मास, ज्येष्ठ नक्षत्र में ज्येष्ठ मास, पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में आषाढ़ मास, श्रवण नक्षत्र में श्रावण मास ,पूर्वभाद्रपदा में भाद्रपद मास,अश्विन नक्षत्र में आश्विन मास, कृत्तिका नक्षत्र में कार्तिक मास, मृगशिरा नक्षत्र में मार्गशीर्ष मास, पुष्य नक्षत्र में पौष मास, मघा नक्षत्र में माघ मास, उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में फाल्गुन मास कहलाता है !

श्रावण मास में शिव पूजा व गौरी पूजा का विशेष महत्व है !

इस मास में शिव पूजा से पूजक की सभी मनोकामनाएं शीघ्र पूरी हो जाती हैं ! इस मास में शिव पूजा से, रुद्राभिषेक से, शिव व रूद्र यज्ञ से, शिव मंत्र के जप से, आशुतोष भगवान की अखण्ड भक्ति के साथ पूजक धन धान्य से परिपूर्ण तो होता ही है साथ में वंश वृद्धि, आत्मिक शान्ति और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति भी होती है !
विशेषकर रुद्राष्टाध्यायी से भगवान रूद्र के अभिषेक का विशेष महत्व है ! शिव पुराण में स्वयं भगवान शिव ने रुद्राष्टाध्यायी के मन्त्रों से रुद्राभिषेक के माहात्म्य का वर्णन किया है !
पूजक तीर्थों के जल, दूध, दही, घी, पञ्चामृत, गन्ने के रस, फलों के रस, कुशोदक से भिन्न भिन्न कामनायों की पूर्ति के लिए भगवान शिव की पूजा कर सकता है !

आरोग्यता व व्याधि की शान्ति के लिए कुशोदक से अभिषेक करें !
धन सम्बन्धी परेशानियों से मुक्ति के लिए शहद या घी से अभिषेक करें !
अखण्ड लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए गन्ने के रस से अभिषेक करें !
पुत्र प्राप्ति के लिए गाय के दूध से अभिषेक करें !
मोक्ष प्राप्ति के तीर्थों के जल से अभिषेक करें !
स्मरण शक्ति की वृद्धि के लिए दूध में शक्कर मिला कर अभिषेक करें !
शत्रुओं के दमन के लिए सरसों के तेल से अभिषेक करें !
ऋण मुक्ति के लिए मंगलवार के दिन शिव अभिषेक किया करें !

विशेषकर श्रावण मास के सोमवार, मासिक शिवरात्रि यानि कृष्ण पक्ष चतुर्दशी, प्रदोष व्रत के दिन विशेष रूप से भगवान शिव की पूजा अवश्य करें !
भगवान शिव के लिए किये जाने वाले प्रदोष व्रत का तो विशेष महत्व है, शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि जो एक वर्ष तक भगवान शिव की प्रसन्नता के लिए प्रदोष व्रत रखता है उसके सभी दोष दूर हो जाते हैं !

जो साधक संतान चाहता है यदि वो शुक्ल पक्ष त्रयोदशी शनिवार यानि शनि प्रदोष से एक वर्ष तक हर प्रदोष को व्रत रखे तो भगवान शिव की कृपा से निश्चित सुयोग्य संतान की प्राप्ति होगी !
ऋण मुक्ति के लिए शुक्ल पक्ष त्रयोदशी मंगलवार यानि भौम प्रदोष से एक वर्ष तक हर प्रदोष के दिन व्रत रखे !
आयु वृद्धि या रोग निवृत्ति के लिए शुक्ल पक्ष त्रयोदशी रविवार यानि रवि प्रदोष से एक वर्ष तक हर प्रदोष को व्रत रखे !
गृह शान्ति या सभी मनोकामनायों की पूर्ति के लिए शुक्ल पक्ष त्रयोदशी सोमवार यानि सोम प्रदोष से एक वर्ष तक हर प्रदोष को व्रत करे !

गौरी व्रत (मंगला गौरी व्रत) 

यह मंगला गौरी व्रत नव विवाहित वधु को सुयोग्य सन्तान, सुखी वैवाहिक जीवन और अखण्ड सौभाग्य प्राप्ति के लिए श्रावण मास में प्रत्येक मंगलवार को पांच वर्ष तक अवश्य करना चाहिए !
विवाह के पश्चात् पहले वर्ष पीहर (पिता के घर) और अगले चार वर्ष तक पति के घर ससुराल में इस व्रत को अवश्य करें !
श्रावण मास के प्रत्येक मंगलवार को गौरी माँ की पूजा करे, माँ गौरी जी के पास आटे से बने सोलह 16 मुख वाले 16 सोलह बत्ती से युक्त दीपक को जलाएं ! यदि संभव हो सके तो षोडशोपचार से नहीं तो पंचोपचार यानि सौभाग्य द्रव्य, चन्दन, अक्षत (चावल), फूल, मिठाई, धूप आदि से माँ गौरी की पूजा करें और अपनी माता को सौभाग्य द्रव्य चुनरी, सिन्दूर, कंगन, बिंदिया, वस्त्र, फल, मिठाई आदि अर्पण करें !

जिन कन्यायों के विवाह में विलम्ब हो रहा हो उनको भी मंगलवार के दिन गौरी पूजा अवश्य करनी चाहिए या गौरी जी प्रसन्नता के लिए मंगलवार का व्रत रखना चाहिए ! इस व्रत के प्रभाव से शीघ्र विवाह का योग बनेगा और सुयोग्य मनचाहे पति की प्राप्ति होगी !

नाग पञ्चमी 

श्रावण मास शुक्ल पक्ष पञ्चमी को नाग पूजा का बड़ा महत्व है, कुछ प्रान्तों में लोकाचार के भेदानुसार कृष्ण पक्ष पंचमी को भी नाग पूजा की जाती है ! इस दिन वासुकी कुण्ड में स्नान करने का विधान शास्त्रों में किया गया है ! घर के द्वार पर दोनों तरफ गोबर के सर्प बनाकर "ॐ कुरुकुल्ये हुम् फट स्वाहा" मन्त्र से उनकी पूजा की जाती है !

पवित्रार्पण विधि 

श्रावण मास शुक्लपक्ष एकादशी को भगवान को रेशम, कुश, सूत, मूंज, कपास से बने पवित्रक अर्पण करने का विधान शास्त्रों में वर्णित है ! सौभाग्यवती स्त्री के हाथों से कते हुए सूत से घुटने, जंघा या नाभि तक लम्बे पवित्रक बनायें और "नमो नारायण" मन्त्र का जप करते हुए यथाशक्ति  360, 270, 180, 54, या 27 गांठे लगायें, पंचगव्य से शुद्ध करके भगवान को अर्पण करें !

श्रावणी पर्व ,रक्षा बन्धन

श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन रक्षाबंधन का त्यौहार बड़े धूमधाम से मनाया जाता है ! रक्षाबन्धन भद्रा अर्थात् विष्टि करण को छोड़कर ही करना चाहिए !
इस दिन श्रवण कुमार जी  की पूजा का विधान भी है ! दशरथ जी के हाथों से अनजाने में अपने नेत्रहीन माता पिता को तीर्थयात्रा करवाते हुए श्रवण कुमार जी का वध हो गया ! दशरथ जी ने अनजाने में हुए श्रवण कुमार के वध के अपराध से मुक्ति पाने के लिए श्रावणी के दिन श्रवण कुमार की पूजा का प्रचार किया और तभी से सभी सनातन धर्मी इस दिन श्रवण कुमार जी पूजा भी करते हैं !

ऋक, यजु, साम के स्वाध्यायी ब्राह्मण क्षत्रिय, वैश्य आदि अपने अपने वेद के अनुसार नदियों के तटों पर नदियों में स्नान के पश्चात उपाकर्म कर्म को संपन्न करते हैं ! कुशा से निर्मित ऋषियों की स्थापना करके उनका पूजन, तर्पण और विसर्जन आदि कर्म करते हैं !

इस मास नदियाँ रजस्वला होती है इसलिए नदियों में स्नान वर्जित होता है लेकिन वशिष्ठ जी के वचनानुसार उत्सर्ग,प्रेतस्नान में, चन्द्र या सूर्य ग्रहण में तथा उपाकर्म में नदी स्नान में दोष नहीं लगता ! 

आशा है आप सभी को ये लेख अवश्य अच्छा लगा होगा, त्रुटि के लिए आप सभी नीर क्षीर विवेकी विद्वान जनों से क्षमा प्रार्थी हूँ ! आपके बहुमूल्य सुझावों की प्रतीक्षा रहेगी !  धन्यवाद !

The twelve months are described in Sanatana Dharma, 1. Chaitra, 2. Vaishakh, 3. Jyeshtha, 4. Ashadha, 5. Shravan, 6. Bhadrapada, 7. Ashwin, 8. Kartik, 9. Margashirsha, 10. Pausha  , 11. Magha and 12. Phalgun!

 The calculation of months is also based on a big scientific level!

 The month in which Purnima occurs in Chitra Nakshatra is called Chaitra month, Vaishakh month in Visakha nakshatra, Jyeshtha month in Jyeshtha nakshatra, Ashadha month in Purvashada nakshatra, Shravan month in Shravan nakshatra, Bhadrapada month in Purvabhadrapada, Ashwin month in Ashwin constellation,  Kartik month in Kritika nakshatra, Margashirsha month in Mrigashira nakshatra, Pausha month in Pushya nakshatra, Magha month in Magha nakshatra, Falgun month in Uttaraphalguni nakshatra!

 Shiva Puja and Gauri Puja have special significance in Shravan month!

 In this month, all the wishes of the worshiper are fulfilled quickly by Shiva worship!  In this month, with worship of Shiva, with Rudrabhishek, with Shiva and Rudra Yajna, with chanting of Shiva Mantra, Ashutosh is full of poetic wealth with unwavering devotion to God, along with descent growth, spiritual peace and attainment of good health.  Also happens!
 Lord Rudra's consecration from Rudrashtadhyayi in particular has special significance.  In the Shiva Purana, Lord Shiva himself has described the significance of Rudrabhishek with the mantras of Rudrashtadhyayi!
 The worshiper can worship Lord Shiva for fulfilling different wishes than the pilgrim's water, milk, curd, ghee, panchmrit, sugarcane juice, fruit juice, kushodak!

 Abhisheka for the comfort of healing and disease!
 Abhishek with honey or ghee to get rid of money related troubles!
 Abhishek with sugarcane juice to attain Akhand Laxmi!
 Abhishek with cow's milk to get a son!
 Abhishek with the water of pilgrimages to attain salvation!
 To increase the memory power, add sugar to milk and anoint it!
 To suppress enemies, anoint them with mustard oil!
 Shiva Abhishek done on Tuesday for debt relief!

 Especially on the Monday of Shravan month, monthly Shivaratri i.e. Krishna Paksha Chaturdashi, Pradosh fast, especially worship Lord Shiva!
 Pradosha fast for Lord Shiva has special significance, it is found in the scriptures that all the faults of one who keeps Pradosha fast for the happiness of Lord Shiva for one year are removed!

 If the seeker wants a child, if he keeps fasting every Pradosh for one year from Shukla Paksha Trayodashi Saturday i.e. Shani Pradosh, then by the grace of Lord Shiva, certain qualified children will be attained!
 To get rid of debt, Shukla Paksha should keep a fast on every Pradosh day for one year from Trayodashi Tuesday ie Bhoom Pradosh!
 Shukla Paksha Trayodashi Sunday i.e. Ravi Pradosha should be fasted for one year every year for age increase or retirement.
 For the fulfillment of home peace or all wishes, fasting every Pradosh for one year from Shukla Paksha Trayodashi Monday i.e. Mon Pradosh!

 Gauri Vrat (Mangla Gauri Vrat)

 This Mangla Gauri fasting newly married bride must do for five years every Tuesday in the month of Shravan in order to attain worthy children, happy marital life and unbroken happiness!
 Do this fast in the first year after marriage in Pihar (father's house) and husband's house in-laws for the next four years!
 On every Tuesday of the month of Shravan, Gauri should worship the mother, light a lamp with sixteen 16-faced 16-light lamps made of flour near Maa Gauri!  If possible, worship Goddess Gauri with panchopchar, i.e., good luck material, sandalwood, Akshat (rice), flowers, sweets, incense, etc., if possible, and not from hexodrama;  , Offer sweets etc.

 Girls who are getting delayed in their marriage should also perform Gauri Puja on Tuesday or Gaur Ji should keep a fast on Tuesday for happiness!  Due to the effect of this fast, marriage will be formed soon and you will get a suitable husband.

 Nag Panchami

 Shravan month Shukla Paksha Panchami has great importance of Nag Puja, in some provinces Naga Puja is also performed on Krishna Paksha Panchami according to the ethos of ethos!  On this day, bathing in Vasuki Kunda has been done in the scriptures!  They are worshiped on the door of the house by making a snake of cow dung on both sides with the chant "Om Kurukulye Hum Burst Swaha"!

 Purification method

 The Shravan month Shuklapaksha Ekadashi is described in the scriptures to offer a holy offering made of silk, kush, cotton, cinnamon, cotton to the Lord!  Make long sanctuaries from the thread of the hand of a fortunate woman to the knee, thigh or navel, and chant "Namo Narayan" mantra, apply 360, 270, 180, 54, or 27 knots, purified with Panchagavya and offer it to the Lord.  !

 Shravani festival, Raksha Bandhan

 Rakshabandhan festival is celebrated with great pomp on the full moon day of Shravan month!  Rakshabandhan should be done except Bhadra i.e. Vishti Karan!
 There is also a law to worship Shravan Kumar ji on this day!  Inadvertently making a pilgrimage to his blind parents with the hands of Dashrath ji, Shravan Kumar ji was killed!  Dasharatha ji preached the worship of Shravan Kumar on the day of Shravani to get rid of the crime of slaying of Shravan Kumar inadvertently and since then all Sanatan Dharmis also worship Shravan Kumar ji on this day!

 Raksha, Yaju, Sama's self-styled Brahmins, Kshatriyas, Vaishyas etc. according to their respective Vedas perform the Upakarma Karma after bathing in the rivers on the banks of the rivers!  Establish rishis made from Kusha and worship them, perform tarpan and immersion etc.

 Bathing in the rivers is forbidden during this month, so bathing in rivers is prohibited, but according to Vashishtha's promise, there is no fault in river bathing in Utsarga, Phantasanan, Chandra or Solar Eclipse and Upakarma!

 Hope you all would have liked this article, I apologize to all you neer Kshir wise scholars for the error!  Looking forward to your valuable suggestions!  Thank you !

 Acharya Garg Acharya Garg

 Storyteller, astrology, ritual, vastu, gemstone and gemologist

                              आचार्य गर्ग Acharya Garg

       कथावाचक, ज्योतिष, कर्मकांड, वास्तु, रत्न व उपरत्न  

                       +91- 8803821111   

Saturday, 14 May 2016

क्यों आता है रविवार के बाद सोमवार, मंगलवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार और शनिवार ? Why comes Monday after Sunday

   "पञ्चानि अंगानि यस्य सः पञ्चांग:"

जिसके वार, तिथि, नक्षत्र, योग, करण नामक पांच अंग हो उसे पंचांग कहते हैं ! ज्योतिष शास्त्र में पंचांग का विशेष महत्त्व है, क्योंकि शुभ वार, शुभ तिथि, शुभ करण, शुभ नक्षत्र, शुभ योग में किये गए धार्मिक अनुष्ठान, तीर्थ स्नान, पूजा, जप, दान, स्तोत्रादि के पाठ का परिणाम शुभ ही होता है और किये गए कर्म का पूर्ण फल मिलता है !

वार :- रविवार, सोमवार, मंगलवार, बुधवार, वृहस्पतिवार, शुक्रवार, शनिवार ये सात वार हैं ! 

ग्रह सात हैं इसलिए वार भी सात ही हैं, राहु केतु छाया ग्रह हैं इसलिए इनकी गणना वारों में नहीं होती !
   
वारा: सप्त: रवि सोमो मंगलश्च बुधस्तथा !

   वृहस्पतिश्च शुक्रश्च शनिश्चैव  यथा क्रमम !!

पृथ्वी के सबसे समीप उपग्रह चन्द्र है उसके बाद ग्रह बुध फिर शुक्र, सूर्य, मंगल, गुरु है और अंत में शनि ग्रह की कक्षा है !
                              "1.चन्द्र - 2.बुध - 3.शुक्र - 4.सूर्य - 5.मंगल - 6.गुरु - 7.शनि "

यह ग्रहों की कक्षा का क्रम है ! ज्योतिष शास्त्र में सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक एक सावन दिन माना जाता है ! जिस तरह एक दिन में 24 घंटे होतें हैं उसी प्रकार एक सावन दिन में 24 होरा होती है ! एक होरा अढाई घटी यानि एक घंटे की होती है, एक घटी 24 मिनट की, आधी घटी 12  मिनट की होती है इसलिए 24 +24 +12 = 60 मिनट !
 पहली होरा उसी ग्रह की दूसरी होरा उसके आगे के छठे ग्रह की फिर तीसरी होरा उसके आगे के छठे ग्रह की होती है !
यस्मिन् वारे क्षणेवारे इष्टस्तद्वासराधिप: !
आद्य: षष्ठो द्वितीयोSस्मात तस्मात् षष्ठस्तृतीयम: !!
षष्ठ: षष्ठस्तथान्येषां कालहोराधिपा: स्मृता: !
सार्धनाडीद्वयेनैव दिवारात्रं यथाक्रमात !!
ग्रहों की कक्षा के अनुसार होरा की गणना करनी चाहिए, वारों की गणना रविवार से आरम्भ होती है और होरा को क्षणवार भी कहते हैं जैसे :-

(1.) रविवार के दिन पहली होरा रवि की अर्थात सूर्य की होगी, दूसरी होरा उसके आगे के 1.मंगल- 2.गुरु- 3.शनि- 4.चन्द्र- 5.बुध 6. शुक्र छठे ग्रह अर्थात शुक्र की, तीसरी होरा उसके आगे के छठे ग्रह बुध की, इसी प्रकार छ: छ: के क्रम से चौथी होरा चन्द्र की, पांचवीं होरा शनि की, छठी होरा वृहस्पति की, सातवीं होरा मंगल की, आठवीं होरा फिर सूर्य की, नवीं होरा शुक्र की, दसवीं होरा बुध की, ग्यारवीं होरा चन्द्र की, बारहवीं होरा शनि की, तेहरवीं होरा वृहस्पति की, चौदहवीं होरा मंगल की, पंद्रहवीं होरा फिर सूर्य की, सोलहवीं होरा शुक्र की, सतारहवीं होरा बुध की, अठारहवीं होरा चन्द्र की, उन्नीसवीं होरा शनि की बीसवीं होरा वृहस्पति की, इक्कीसवीं होरा मंगल की, बाईसवीं  होरा फिर सूर्य की , तेईसवीं होरा शुक्र की, चौबीसवीं होरा बुध की होती है ! 

इस प्रकार रविवार के दिन 4 बार रवि यानि सूर्य ग्रह की होरा आती है पहली बार 1. होरा सूर्य की, दूसरी बार  आठवीं 8. होरा सूर्य की , तीसरी बार पंद्रहवीं 15. होरा सूर्य  की और चौथी बार बाईसवीं 22. होरा सूर्य की होती है !
पच्चीसवीं 25.होरा चन्द्र की होती है इसलिए अगला वार चन्द्रवार या सोमवार होता है !

(2.) सोमवार या चंद्रवार के दिन  पहली होरा 1. चन्द्र की , 2. शनि की , 3. वृहस्पति की , 4. मंगल की, 5. सूर्य की, 6. शुक्र की, 7. बुध की, 8. चन्द्र की, 9. शनि की, 10. वृहस्पति की, 11. मंगल की, 12. सूर्य की, 13.शुक्र की, 14. बुध की, 15. चन्द्र की, 16. शनि की, 17. वृहस्पति की, 18. मंगल की, 19. सूर्य की, 20. शुक्र की, 21. बुध की, 22. चन्द्र की, 23. शनि की, 24. वृहस्पति की होरा होती है !

इस प्रकार सोमवार के दिन भी 4 बार  चन्द्र  ग्रह की होरा आती है पहली बार 1. होरा  की, दूसरी बार आठवीं 8. होरा चन्द्र  की , तीसरी बार पंद्रहवीं 15. होरा चन्द्र की और चौथी व अंतिम बार बाईसवीं 22. होरा चन्द्र की होती है !
पच्चीसवीं 25.होरा मंगल ग्रह की होती है इसलिए अगला वार मंगलवार होता है !

(3.) मंगलवार या भौमवार के दिन पहली होरा 1. मंगल की , 2. सूर्य की , 3. शुक्र की , 4. बुध की, 5. चन्द्र की, 6. शनि की, 7. वृहस्पति की, 8. मंगल की, 9. सूर्य की, 10. शुक्र की, 11. बुध की, 12. चन्द्र की, 13.शनि की, 14. वृहस्पति की, 15. मंगल की, 16. सूर्य की, 17. शुक्र की, 18. बुध की, 19. चन्द्र की, 20. शनि की, 21. वृहस्पति की, 22. मंगल की, 23. सूर्य की, 24. शुक्र की होरा होती है !

इस प्रकार मंगलवार के दिन भी 4 बार मंगल ग्रह की होरा आती है पहली बार 1. होरा मंगल की, दूसरी बार आठवीं 8. होरा मंगल की , तीसरी बार पंद्रहवीं 15. होरा मंगल की और चौथी व अंतिम बार बाईसवीं 22. होरा मंगल की होती है !
पच्चीसवीं 25.होरा बुध ग्रह की होती है इसलिए अगला वार बुधवार होता है !

(4.) बुधवार के दिन पहली होरा 1. बुध की , 2. चन्द्र की , 3. शनि की , 4.  वृहस्पति की, 5. मंगल की, 6. सूर्य की, 7. शुक्र की, 8. बुध की, 9. चन्द्र की, 10. शनि की, 11. वृहस्पति की, 12. मंगल की, 13.सूर्य की, 14. शुक्र की, 15. बुध की, 16. चन्द्र की, 17. शनि की, 18. वृहस्पति की, 19. मंगल की, 20. सूर्य की, 21. शुक्र की, 22. बुध की, 23. चन्द्र की, 24. शनि की होरा होती है !

इस प्रकार बुधवार के दिन भी 4 बार बुध ग्रह की होरा आती है पहली बार 1. होरा बुध की, दूसरी बार आठवीं 8. होरा बुध की , तीसरी बार पंद्रहवीं 15. होरा बुध की और चौथी व अंतिम बार बाईसवीं 22. होरा बुध की होती है !
पच्चीसवीं 25.होरा वृहस्पति ग्रह की होती है इस अगला वार गुरुवार या वृहस्पतिवार होता है !

(5.) गुरुवार या वृहस्पतिवार के दिन पहली होरा 1. गुरु की , 2. मंगल की , 3. सूर्य की , 4.  शुक्र की, 5. बुध की, 6. चन्द्र की, 7. शनि की, 8. वृहस्पति की, 9. मंगल की, 10. सूर्य की, 11. शुक्र की, 12. बुध की, 13.चन्द्र की, 14. शनि की, 15. गुरु की, 16. मंगल की, 17. सूर्य की, 18. शुक्र की, 19. बुध की, 20. चन्द्र की, 21. शनि की, 22. गुरु की, 23. मंगल की, 24. सूर्य की होरा होती है !

इस प्रकार वृहस्पतिवार के दिन भी 4 बार गुरु ग्रह की होरा आती है पहली बार 1. होरा गुरु की, दूसरी बार आठवीं 8. होरा गुरु की , तीसरी बार पंद्रहवीं 15. होरा गुरु की और चौथी व अंतिम बार बाईसवीं 22. होरा गुरु की होती है !
पच्चीसवीं 25.होरा शुक्र ग्रह की होती है इस अगला वार शुक्रवार या भृगुवार होता है !

(6.) शुक्रवार या भृगुवार के दिन पहली होरा  1. शुक्र की , 2. बुध की , 3. चन्द्र की , 4.  शनि की, 5. वृहस्पति की, 6. मंगल की, 7. सूर्य की, 8. शुक्र की, 9. बुध की, 10. चन्द्र की, 11. शनि की, 12. वृहस्पति की, 13.मंगल की, 14. सूर्य की, 15. शुक्र की, 16. बुध की, 17. चन्द्र की, 18. शनि की, 19. गुरु की, 20. मंगल की, 21. सूर्य की, 22. शुक्र की, 23. बुध की, 24. चन्द्र की होरा होती है !

इस प्रकार शुक्रवार के दिन भी 4 बार शुक्र ग्रह की होरा आती है पहली बार 1. होरा शुक्र की, दूसरी बार आठवीं 8. होरा शुक्र की , तीसरी बार पंद्रहवीं 15. होरा शुक्र की और चौथी व अंतिम बार बाईसवीं 22. होरा शुक्र की होती है !
पच्चीसवीं 25.होरा शनि ग्रह की होती है इस अगला वार शनिवार होता है !


(7.) शनिवार  के दिन पहली होरा 1. शनि की , 2. वृहस्पति की , 3. मंगल की , 4. सूर्य की, 5. शुक्र की, 6. बुध की, 7. चन्द्र की, 8. शनि की, 9. वृहस्पति की , 10. मंगल की, 11. सूर्य की, 12. शुक्र की, 13. बुध की, 14. चन्द्र की, 15. शनि की, 16. वृहस्पति की, 17. मंगल, 18. सूर्य की, 19. शुक्र की, 20. बुध की, 21. चन्द्र की, 22. शनि की, 23. वृहस्पति की, 24. मंगल की होरा होती है !

इस प्रकार शनिवार के दिन भी 4 बार शनि ग्रह की होरा आती है पहली बार 1. होरा शनि की, दूसरी बार आठवीं 8. होरा शनि की , तीसरी बार पंद्रहवीं 15. होरा शनि की और चौथी व अंतिम बार बाईसवीं 22. होरा शनि की होती है !
पच्चीसवीं 25.होरा सूर्य यानि रवि ग्रह की होती है इसलिए पुनः शनिवार से अगला वार रविवार होता है !

प्रत्येक रविवारादि वारों में पहली, आठवीं, पंद्रहवीं और बाईसवीं होरा (क्षणवार ) उसी वार की होती हैं !

अतः अब सबसे सरल तरीके से समझने की कोशिश करते हैं जैसे पहले बताया जा चुका है पृथ्वी से सबसे नज़दीक ग्रह चंद्रमा है, उसके बाद बुध, उसके बाद शुक्र, उसके बाद सूर्य, उसके बाद मंगल, उसके बाद गुरु और उसके बाद शनि स्थित है, चंद्रमा सबसे नज़दीक ग्रह है और शनि सबसे दूर ग्रह है !
                     
                       "1.चन्द्र - 2.बुध - 3.शुक्र - 4.सूर्य - 5.मंगल - 6.गुरु - 7.शनि "

अब यहाँ पर ध्यान दीजिये उदाहरण के लिए अगर शनिवार के दिन यदि होरा देखनी हो तो शनि से उल्टा गिनना शुरू कीजिये पहली होरा शनि की यानि :-
1. शनि उसके बाद 2. गुरु,  3. मंगल,  4. सूर्य,  5. शुक्र, 6. बुध  7. चन्द्र, --- फिर पुनः
8. शनि, 9. गुरु 10. मंगल, 11. सूर्य, 12. शुक्र, 13. बुध, 14. चन्द्र,           --- फिर पुनः
15. शनि, 16. गुरु, 17. मंगल, 18. सूर्य, 19. शुक्र, 20. बुध, 21. चन्द्र,      --- फिर पुनः
22. शनि, 23. गुरु, 24. मंगल,   
25. होरा सूर्य की अतः शनिवार के बाद अगला वार रविवार होगा, इसी तरह हर वार की होरा (क्षण वार) आसानी से जानी जा सकती है ! -- 

अब रविवार का उदाहरण लेते हैं -- रविवार में सूर्य से आरम्भ करेंगे उलटे क्रम में पहली होरा सूर्य की --
1. सूर्य, 2. शुक्र, 3. बुध, 4. चन्द्र, उसके बाद 
5. शनि, 6. गुरु, 7. मंगल, 8. सूर्य, 9. शुक्र, 10. बुध, 11. चन्द्र, 
12. शनि, 13. गुरु, 14. मंगल, 15. सूर्य, 16. शुक्र, 17. बुध, 18. चन्द्र,
19. शनि, 20. गुरु, 21. मंगल, 22. सूर्य, 23. शुक्र, 24. बुध 
25. होरा चन्द्र की है अतः रविवार के बाद अगला वार चन्द्रवार या सोमवार होगा !

अब सोमवार का चंद्रवार का उदाहरण लेते हैं -- सोमवार को पहली होरा चन्द्र की 
1. चन्द्र, उसके बाद 
2. शनि, 3. गुरु, 4. मंगल, 5. सूर्य, 6. शुक्र, 7. बुध, 8. चन्द्र,
9. शनि, 10. गुरु, 11. मंगल, 12. सूर्य, 13. शुक्र, 14. बुध, 15. चन्द्र,
16. शनि, 17. गुरु, 18. मंगल, 19. सूर्य, 20. शुक्र, 21. बुध, 22. चन्द्र,
23. शनि, 24. गुरु 
25. होरा मंगल की है अतः सोमवार के बाद अगला वार मंगलवार होगा ! 

अब मंगलवार या भौमवार का उदाहरण लेते हैं -- मंगलवार  को पहली होरा मंगल की 
1. मंगल, 2. सूर्य, 3. शुक्र, 4. बुध, 5. चन्द्र,
6. शनि, 7. गुरु, 8. मंगल, 9. सूर्य, 10. शुक्र, 11. बुध, 12. चन्द्र,
13. शनि, 14. गुरु, 15. मंगल, 16. सूर्य, 17. शुक्र, 18. बुध, 19. चन्द्र,
20. शनि, 21. गुरु, 22. मंगल, 23. सूर्य, 24. शुक्र,
25. होरा बुध की है अतः मंगलवार के बाद अगला वार बुधवार होगा ! 

अब बुधवार का उदाहरण लेते हैं -- बुधवार को पहली होरा बुध की
1. बुध, 2. चन्द्र, 
3. शनि, 4. गुरु, 5. मंगल, 6. सूर्य, 7. शुक्र, 8. बुध, 9. चन्द्र,
10. शनि, 11. गुरु, 12. मंगल, 13. सूर्य, 14. शुक्र, 15. बुध, 16. चन्द्र,
17. शनि, 18. गुरु, 19. मंगल, 20. सूर्य, 21. शुक्र, 22. बुध, 23. चन्द्र,
24. शनि 
25. होरा गुरु की है अतः बुधवार के बाद अगला वार गुरूवार होगा !

अब गुरूवार का उदाहरण लेते हैं -- गुरूवार को पहली होरा गुरु की
1. गुरु, 2. मंगल, 3. सूर्य, 4. शुक्र, 5. बुध, 6. चन्द्र,
7. शनि, 8. गुरु, 9. मंगल, 10. सूर्य, 11. शुक्र, 12. बुध, 13. चन्द्र,
14. शनि, 15. गुरु, 16. मंगल, 17. सूर्य, 18. शुक्र, 19. बुध, 20. चन्द्र,
21. शनि, 22. गुरु, 23. मंगल, 24. सूर्य,
25. होरा शुक्र की है अतः गुरूवार के बाद अगला वार शुक्रवार होगा !

 अब शुक्रवार का उदाहरण लेते हैं -- शुक्रवार को पहली होरा शुक्र की
1. शुक्र, 2. बुध, 3. चन्द्र,
4. शनि, 5. गुरु, 6. मंगल, 7. सूर्य, 8. शुक्र, 9. बुध, 10. चन्द्र,
11. शनि, 12. गुरु, 13. मंगल, 14. सूर्य, 15. शुक्र, 16. बुध, 17. चन्द्र,
18. शनि, 19. गुरु, 20. मंगल, 21. सूर्य, 22. शुक्र, 23. बुध, 24. चन्द्र,
25. होरा शनि की है अतः शुक्रवार बाद अगला वार शनिवार होगा !



अतः आशा है अब सरलता ये समझ में आ गया होगा कि रविवार के बाद सोमवार, सोमवार के बाद मंगलवार, मंगलवार के बाद बुधवार, बुधवार के बाद गुरूवार, गुरूवार के बाद शुक्रवार, शुक्रवार के बाद शनिवार और शनिवार के बाद पुनः रविवार ही क्यूँ आता है !

भारतीय स्टैंडर्ड समय के अनुसार सुबह 6 बजकर 26 मिनट पर सभी जगह वार प्रवेश हो ही जाता है ! महर्षियों या ज्योतिषियों के अनुसार सूक्ष्म वार (क्षणवार) का विशेष महत्व है, इसलिए जो पूजा, जो दान, जो उपाय जिस वार में कहा गया है वह उस वार सूक्ष्मवार, होरा या क्षणवार में किया जा सकता है !

यस्य ग्रहस्य वारे यत कर्म किन्चित प्रकीर्तितम !
तत तस्य क्षणवारेषु कर्तव्यं सर्वदा बुधै: !!

रविवार स्थिर संज्ञक, सोमवार चर संज्ञक, मंगल उग्र संज्ञक, बुध मिश्र संज्ञक, गुरु लघु संज्ञक, शुक्र मृदु संज्ञक और शनि तीक्ष्ण संज्ञक वार हैं !

सोमवार, बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार सौम्यवार हैं या यूँ कह सकते हैं कि सभी कार्यों के लिए शुभ हैं, इनमे किये गए कार्यों में  सिद्धि मिलती है ! 

1. रविवार के दिन व्यापार सम्बन्धी कार्य, यात्रा, गाय या पशु का खरीदने बेचने सम्बन्धी कार्य, औषधी बनाना या खाना, शस्त्र सम्बन्धी कार्य, सोने तांबे से सम्बंधित कार्य, युद्ध सम्बन्धी कार्य, मन्त्र, नौकरी, राज्याभिषेक (शपथ) अदि कार्य किये जा सकते हैं !

2. सोमवार के दिन अक्षरारम्भ, दूध, दहीं, घी, जल या तरल पदार्थ सम्बन्धी कार्य, वृक्ष लगाना, कृषि, फूल सम्बन्धी, पशु सम्बन्धी, स्त्री सम्बन्धी, चांदी, रत्न मोती सम्बन्धी, कार्य किये जा सकते हैं !

3. मंगलवार के दिन भूमि सम्बन्धी, विष सम्बन्धी, अग्नि सम्बन्धी, शस्त्र सम्बन्धी, युद्ध सम्बन्धी, सेना सम्बन्धी, धातु सोना सम्बन्धी, रत्न मूंगा सम्बन्धी कार्य किये जा सकते हैं !

4. बुधवार के दिन अध्ययन अध्यापन सम्बन्धी, कला सम्बन्धी, शिल्प सम्बन्धी, व्यापार, व्यायाम, ट्रेनिंग, धातु कांसा सोना सम्बन्धी, सन्धि और विवाहादि कार्य किये जा सकते हैं !

5. गुरूवार के दिन विद्या, यज्ञ, धार्मिक अनुष्ठान, वस्त्र सम्बन्धी, घोडा सम्बन्धी, औषधी सम्बन्धी, सोने से सम्बन्धी, आभूषण सम्बन्धी, गृहकर्म, तीर्थ यात्रा सम्बन्धी कार्य किये जा सकते हैं !

6. शुक्रवार के दिन स्त्री सम्बन्धी, शय्या सम्बन्धी, गो सम्बन्धी, मणि, रत्न, वस्त्र, आभूषण, सुगंध सम्बन्धी, भूमि सम्बन्धी, कृषिकर्म आदि कार्य किये जा सकते हैं !

7. शनिवार के दिन पत्थर सम्बन्धी, अस्त्र शस्त्र सम्बन्धी, मन्त्र दीक्षा सम्बन्धी, लोहा, शीशा, रांगा सम्बन्धी, नौकरी सम्बन्धी कार्य किये जा सकते हैं !

रविवार और शुक्रवार के दिन पश्चिम दिशा में, सोमवार और शनिवार के दिन पूर्व दिशा में, मंगलवार और बुधवार को उत्तर दिशा, गुरूवार को दक्षिण दिशा में नहीं जाना चाहिए या यात्रा नहीं करनी चाहिए ! 

आग्नेयी पूर्व दिग्ज्ञेया दक्षिणादिक् च नैऋर्ती !
वायवी पश्चिमादिक् स्यादैशानी च तथोत्तरा !!

अग्निकोण की गणना पूर्वदिशा में, वायुकोण और ईशान कोण की उत्तर दिशा में, नैऋत्य कोण की गणना दक्षिण में होती है !

यदि जाना अनिवार्य हो तो रविवार के दिन घी, सोमवार के दिन दूध, मंगलवार  के दिन गुड, बुधवार के दिन, तिल, गुरुवार के दिन दहीं, शुक्रवार के दिन ( यव )जौ, शनिवार के दिन उड़द खाकर घर से निकलें !

आशा है आप को यह लेख अवश्य अच्छा लगा होगा, किसी प्रकार की त्रुटि के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ ! आप अपने बहुमूल्य सुझावों से अवश्य मार्गदर्शन  करें ! 

आचार्य गर्ग  Acharya Garg

कथावाचक, ज्योतिष, कर्मकांड, वास्तु, रत्न व् उपरत्न विशेषज्ञ

डेरी फार्म 59, मसूदपुर, वसंत कुञ्ज, नई दिल्ली, 110070
+91-9990074233, 8826569193




Email :- rajgarg210479@gmail.com

Wednesday, 23 December 2015

तिलक का महत्त्व Importance of Tilak :-

हमारे शास्त्रों में तिलक को प्रत्येक धार्मिक कृत्य में अनिवार्य माना गया है क्योंकि बिना तिलक धारण हमारे द्वारा ग्रहण, संक्रान्ति, अमवास्यादि पर्व पर किये गये स्नान, दान, तप, यज्ञ, होम, देव पूजा, पितृ पूजा आदि सारे धार्मिक कर्म निष्फल हो जाते हैं ! धार्मिक दृष्टिकोण से ही नहीं अपितु स्वाथ्य की दृष्टि से भी तिलक का विशेष महत्त्व है !

शास्त्रों में त्रिपुण्ड और ऊर्ध्वपुण्ड के महत्व पर विशेष चर्चा की गयी हैं ! त्रिपुंड के विषय में तो कहा गया है कि जप, तप, होम, यज्ञ, वैश्वदेव पूजन, देव पूजा, श्राद्ध पूजा के पावन अवसर पर जो विमलात्मा साधक त्रिपुण्ड धारण करता है वो मृत्यु को भी जीत सकता है अर्थात दीर्घजीवी होता है ! 
ऊर्ध्वपुण्ड तीर्थों की मिट्टी से और त्रिपुण्ड यज्ञ की भस्म से लगाना चाहिए या ऊर्ध्वपुण्ड और त्रिपुंड का तिलक चन्दन से धारण किया जा सकता है  ! पतितपावनी तीर्थों की मिट्टी और चन्दन के अतिरिक्त कुंकुंम, सिन्दूर से भी तिलक लगाया जा सकता है, लेकिन तीर्थों की पवित्र व शुद्ध मिट्टी के तिलक को शास्त्रों में सर्वश्रेष्ठ कहा गया है क्योंकि तीर्थों की पावन मिट्टी में सभी प्रकार के संक्रामक कीटाणुओं को विनष्ट करने की अद्भुत शक्ति होती है !  
हमारे शास्त्रों में, यज्ञ में जिस प्रकार की समिधा (आम, खदिर, गुल्लर, पीपल, पलाश,अपामार्ग आदि लकड़ियों ) या ( गिलोय, कमलगट्टा, जटामांसी, वच, अगर, तगर, चन्दन का बुरादा आदि ) सामग्री का प्रयोग किया जाता है, आयुर्वेद में इन से कई प्रकार की औषधियों  का निर्माण भी होता है इसलिए यज्ञ की भस्म का तिलक भी स्वास्थ्य की दृष्टि से लाभकारी है ! 
अगर तीर्थों की पावन मिट्टी, चन्दन, सिन्दूर, कुंकुंम, यज्ञ की  भस्म उपलब्ध न हो तो गंगा जल से या शुद्ध जल से भी तिलक किया जा सकता ! 
ऊर्ध्वपुण्ड ऊर्ध्व गति अर्थात मोक्ष का प्रतीक है और त्रिपुण्ड मन, कर्म, वचन की पवित्रता का प्रतीक है ! 
तिलक का ललाट या मस्तक पर लगाने का यही कारण है की हमारा मस्तिष्क शान्त रहे , मस्तिष्क में उठने वाले विचार सकारात्मक हों, शुद्ध हों क्योंकि सकारात्मक विचारों, निर्णयों और कर्मों का परिणाम भी अपने लिए और समाज के लिए सकारात्मक होगा अर्थात हितकारी होगा ! 
मन्त्र जापक, मन्त्र साधक, योगी, सन्त, महापुरुष अपना ध्यान सुषुम्ना नाडी में अर्थात भृकुटी और ललाट के मध्य भाग में ही केन्द्रित करते हैं क्योंकि हृदय की सौ नाडीयों में सुषुम्ना नाडी विशेष महत्व रखती है क्योंकि सुषुम्ना  नाडी हृदय से सीधे मस्तक के मध्य भाग से होते हुए ब्रह्मरन्ध्र से जुड़ती है ! हमारे मन में जितने भी संकल्प-विकल्प या विचार उठते हैं उसका प्रभाव सीधा हमारे मस्तिष्क पर पड़ता है, इसीलिए जिस दिन मन दुखी होगा उस दिन शिर दर्द की सम्भावना अधिक रहती है ! जितना हमारा मन विकार रहित होगा उतना ही हमारा स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा ! स्वस्थ मन, स्वस्थ तन से ही स्वस्थ कर्म होगा जो हमारे लिए, समाज के लिए कल्याणकारी सिद्ध हो सकता है !   शुक्र (वीर्य) नामक धातु यों तो पूरे शरीर में है फिर भी मस्तक के साथ उसका गहरा सम्बन्ध है जिससे यौवन और बल सदा बना रहता है, इसी धातु की कमी के कारण मुख निस्तेज हो जाता है इसी धातु के कारण मुख पर सदा तेज बना रहता है, इसलिए भी यौवन की रक्षा, मुख मण्डल के तेज के लिए, वीर्य रक्षा के लिए अवश्य तिलक धारण करना चाहिए !
इसलिए हर रोज माथे पर तीर्थों की मिट्टी, चन्दन, सिन्दूर, कुंकुंम, यज्ञ की भस्म का  तिलक अवश्य लगायें, स्वस्थ रहें ! 
आशा है आपको इस लेख से अवश्य लाभ मिलेगा ! लेख में किसी भी प्रकार की त्रुटि, कमी के लिए आप सभी नीर क्षीर विवेकी पाठकों से क्षमाप्रार्थी हूँ !  आप सभी के अमूल्य सुझावों की प्रतीक्षा रहेगी ! सुझावों के लिए आप मेल भी कर सकते हैं - rajgarg210479@gmail.com 
ध्यान के लिए धन्यवाद, शीघ्र एक नए लेख के साथ आचार्य गर्ग , नमो नारायण, नमस्कार  ! 

In our scriptures, Tilak is considered to be compulsory in every religious act because without religious wearing Tilak, all the religious deeds, bathing, charity, penance, sacrifice, home, deva puja, ancestral worship, etc. performed on the festival of Amavasadi would become fruitless.  Huh !  Tilak has special importance not only from the religious point of view but also from the point of view of health as well!




 There is a special discussion on the importance of Tripund and Uphaarpunda in the scriptures!  It has been said about Tripund that chanting, penance, home, yajna, vishvadev worship, deva puja, shrimadh worship on the auspicious occasion, the person who holds the trinity, can also win death, that is, long life!



 It should be done with the soil of the pilgrimage pilgrimage and the ashes of the Tripunda Yagna or the tilak of the vertigo and tripunda can be worn with sandalwood!  In addition to the soil and sandalwood of the Petitpavni pilgrimage, tilak can also be applied from Kunkum, Sindoor, but the holy and pure clay tilak of the pilgrimages is said to be the best in the scriptures as it is used to destroy all types of infectious germs in the sacred soil of the pilgrimages.  It is amazing power!

 In our scriptures, the type of samidha (wood, mango, khadir, gullar, peepal, palash, apamarg etc.) or (Giloy, Kamalgatta, Jatamansi, Vach, Agar, Tagar, Sandal powder, etc.) are used in the Yajna.  In Ayurveda, many types of medicines are also made from these, so tilak of the sacrificial fire is also beneficial from the point of view of health!

 

 If the sacred soil of the pilgrimages, sandalwood, vermilion, kunkum, yajna are not available then tilak can be done either with the Ganges water or with pure water.

 

 The vertical head is the symbol of speed, that is salvation, and the trident is the symbol of purity of mind, action, speech!

 This is the reason for applying Tilak on the forehead or forehead, that our brain should be peaceful, the thoughts that arise in the brain should be positive, pure because the result of positive thoughts, decisions and actions will also be positive for ourselves and society, that is, it will be beneficial!

 Mantra japak, mantra seeker, yogi, saint, great man focus his attention in the sushumna nadi i.e. the middle part of the bhrakuti and frontal because the sushumna nadi has special importance in the hundred nadis of the heart because the sushumna nadi is directly from the heart to the middle part of the head.  Connects with Brahmarandhra through  All the thoughts, choices or thoughts that arise in our mind have a direct effect on our brain, that is why the day the mind will be sad, the chances of head ache are more on that day!  The more our mind is devoid of disorder, the better our health will be!  Healthy mind, healthy body will lead to healthy karma which can prove to be beneficial for us, society!  Thus, the metal called Venus (semen) is in the whole body, yet it has a deep connection with the forehead, which keeps puberty and force perpetually, due to lack of this metal, the mouth becomes dull due to this metal.  Therefore, one should wear tilak to protect the youth, for the glory of the face, to protect the semen!
 

 That's why every day, place Tilak on the forehead's soil, sandalwood, vermilion, kunkum, yagna ashes, stay healthy!

 Hope you get benefit from this article!  I apologize to all you neer Kshir discerning readers for any kind of error and lack in the article!  Looking forward to your invaluable suggestions!  You can also mail for suggestions - rajgarg210479@gmail.com

 Thanks for the attention, Acharya Garg with a new article soon, Namo Narayan, Namaskar!



Monday, 14 December 2015

ज्योतिष शास्त्र का महत्व Importance of Astrology :---

               

नमो नारायण, नमस्कार !
हिन्दू सनातन संस्कृति शास्वत, अद्भुत और अत्यन्त विलक्षण है क्योंकि मानवमात्र  की  इहलौकिक और पारलौकिक उन्नति कैसे हो, सबका कल्याण सरलता, सुगमता और शीघ्रता से कैसे हो इसका गंभीरता से चिन्तन केवल हिन्दू सनातन संस्कृति में ही पाया जाता है ! धर्म सम्राट, धर्मचक्र चूड़ामणि, धर्म मर्मज्ञ, विमलात्मा महर्षियों ने अपना सम्पूर्ण जीवन, समस्त संसार के प्राणी कैसे सुखी हों, सभी निरोगी कैसे हों, किसी को कोई दुःख कोई कष्ट ना हो, समाज कल्याण की इसी कामना से राष्ट्र को समर्पित कर दिया और कठोर तपश्चर्या से शास्त्र पुराणादि की रचना की !
हिन्दू  सनातन संस्कृति का सर्वप्रथम अनुपम सर्वश्रेष्ठ  ग्रन्थ वेद है ! भारतीय संस्कृति में इसका महत्वपूर्ण एवं गौरवमय स्थान है ! वेद के यथार्थ ज्ञान एवं अध्यन हेतु छ: विषयों का ज्ञान अत्यंत आवश्यक है - वे हैं शिक्षा, कल्प, निरुक्त, व्याकरण, छन्द और ज्योतिष ! 
उन समस्त शास्त्रों में ज्योतिषशास्त्र सर्वश्रेष्ठ  है और वेद का निर्मल चक्षु कहलाता है ! यज्ञ यागादि, विवाह, उपनयन आदि शुभ कार्यों के लिए उचित, उपयुक्त काल या समय का निर्धारण या निर्देश ज्योतिष शास्त्र से ही संभव हो सकता है क्योंकि काल विभाग, ग्रह - नक्षत्रों की गति का निर्धारण, मुहूर्त आदि की गणना ज्योतिष शास्त्र ही करता है ! इस ज्योतिष शास्त्र के दो विभाग - सिद्धांत ( गणित ) ज्योतिष, फलित ज्योतिष और  तीन स्कंध हैं - सिद्धांत, संहिता और होरा !  जगत के कल्याण के लिए ही ब्रह्मा जी ने इस शास्त्र की रचना की है  !                        
1.     सिद्धांत ज्योतिष : -- जिसमें काल (समय) गणना या गणित के माध्यम से खगोल में चलायमान चर अचर समस्त ग्रहों, नक्षत्रों की स्थिति का ज्ञान होता है वह सिद्धांत ज्योतिष या स्कंध कहलाता है !
2. संहिता : -- जिसमें समस्त जगत, प्रान्त, देश, प्रदेश में समवेत रूप से ग्रहों के शुभ व अशुभ प्रभाव जैसे सुभिक्ष, दुर्भिक्ष, अनावृष्टि, भूकम्प आदि का ज्ञान होता है वह संहिता स्कंध कहलाता है !
3. होरा ज्योतिष : -- जिसमें प्रत्येक जातक या प्राणी के जन्म लग्न के आधार पर जन्म कालिक ग्रहों की स्थिति के आधार पर जातक पर पड़ने वाले शुभ व अशुभ प्रभाव व उसके फलों का ज्ञान होता है वह होरा स्कंध कहलाता है !


Hindu Sanatan culture is eternal, wonderful and extremely unique because the solemn concern for how the welfare of mankind is hereafter and hereafter, the welfare of all is simple, easy and quick!  Dharma Emperor, Dharmachakra Chudamani, Dharma penetrating, Vimalatma Maharshi dedicated their entire life, how should the beings of the whole world be happy, how should they be all healthy, no one should suffer any grief, this wish for social welfare and dedicated to the nation  Created scripture Puranadi with rigorous penance

 The first best text of Hindu Sanatan culture is Vedas!  It has an important and proud place in Indian culture!  Knowledge of six subjects is very important for accurate knowledge and study of Vedas - they are education, kalpa, nirukta, grammar, verses and astrology!

 Among all those scriptures, astrology is the best and the pure Naksha of the Veda is called Chakshu!  Yajadi Yagadi, marriage, Upanayana, etc., the right or suitable time or time for auspicious tasks can be determined only by astrology, because astrology calculates time division, planet - determining the movement of constellations, Muhurta etc.  !  There are two divisions of this astrology - siddhanta (mathematics) astrology, fruited astrology and three wings - siddhanta, samhita and hora!  Brahma Ji has composed this scripture for the welfare of the world!

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 1. Siddhanta Astrology: - Through time (time) calculation or arithmetic, the variable variable in astrology is knowledge of the position of all the planets, constellations, that is called Siddhanta astrology or Skandha!

 2. Samhita: - In which the knowledge of the auspicious and inauspicious effects of planets like Subhaksh, Badakhsha, Unseason, Earthquake, etc. in the whole world, province, country, region is known as Samhita Skandha!
 3. Hora Astrology: - In which the knowledge of the auspicious and inauspicious effects and its effects on the native is based on the position of the planets born on the basis of the birth lag of each native or creature, it is called Hora Skandha!